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आखिर क्यूँ? गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है, जानिये क्या है रहस्य………..

गणेश चतुर्थी प्रति वर्ष शुक्ल भद्र पद के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।इस साल August 25th से गणेश चतुर्थी की शुरूआत होगी। अनंत चतुर्थी के दिन इस त्यौहार का समापन होता है।

गणेश चतुर्थी हिंदूओं का दस दिन तक चलने वाला त्यौहार होता है। गणेश जी शंकर और पार्वती के बेटे हैं।गणपति जी को कई नाम से उनके भक्त पुकारते है और उनकी पूजा करते है। सभी देवताओं में सबसे पहले गणेश की ही पूजा की जाती है।आइये जानते है कि क्यूँ गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।

एक दिन गणेश चूहे की सवारी करते समय फिसल गये तो चन्द्रमा को हंंसी आ गयी। इस बात पर गणेश ने क्रोधित होकर चन्द्रमा को श्राप दे दिया कि तुम्हे अपने चेहरे का बहुत गरूर है तो सुनो, चन्द्र अब तुम किसी के देखने के योग्य नहीं रह जाओगे और यदि किसी ने तुम्हें देख लिया तो पाप का भागी होगा।

श्राप देकर गणेश जी वहॉ से चले गये। चन्द्रमा दुःखी व चिन्तित होकर मन ही मन अपराधबोध महसूस करने लगा कि सर्वगुण सम्पन्न देवता के साथ ये मैंने क्या कर दिया ? चन्द्रमा के दर्शन न कर पाने के श्राप से देवता भी दुःखी हो गये।चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा हो गया ।

त्पश्चात इन्द्र के नेतृत्व में सभी देवताओं ने गजानन की प्रार्थना और स्तुति प्रारम्भ कर दी। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वर मॉगने को कहा। सभी देवताओं ने कहा- प्रभु चन्द्रमा को पहले जैसा कर दो, यही हमारा निवेदन है। गणेश जी ने देवताओ से कहा कि मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता हूं। किन्तु उसमें कुछ संशोधन कर सकता हूं।

देवताओं ने चन्द्र से कहा तुमने गणेश पर हंसकार उनका अपमान किया है और हम लोगों ने मिलकर तुम्हारे अपराध को माफ करने की क्षमा-याचना की है, जिससे प्रसन्न होकर गजानन से सिर्फ एक वर्ष में भाद्र शुक्ल चतुर्थी को अदर्शनीय रहने को कहा है

जो व्यक्ति जाने-अनजाने में भी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा के दर्शन कर लेगा, वह अभिशप्त होगा और उस पर झूठे आरोप लगाये जायेंगे।

इस त्योहार के लिए तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। इसके लिए पंडाल आमतौर पर स्थानीय निवासियों द्वारा इसे मेलों और कार्यशालाओं के माध्यम से एकत्र किया जाता है। मूर्ति बनाने  प्रक्रिया महाराष्ट्र में आमतौर पर भगवान गणेश के पैरों की पूजा के साथ शुरू होता है।

मूर्तियों को आमतौर पर 15-20 दिन पहले “पंडालों” या अस्थायी निर्माणाधीन पंडालों में लाया जाता है। घर में त्योहार की शुरुआत एक मिट्टी मूर्ति (मूर्ति) की स्थापना के साथ शुरू होता है। परिवार मूर्ति स्थापित करने से पहले फूल और अन्य रंगीन आइटम के साथ एक छोटी सी, स्वच्छ कोने को सजाते हैं।जब मूर्ति स्थापित हो जाती है, तब मूर्ति और पंडालों को फूलों और अन्य सामग्री के साथ सजाया जाता है।

अभिषेक समारोह में, एक पुजारी मूर्ति में भगवान गणेश को आमंत्रित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा करता है। इसके बाद पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, धुप, दीप नैवेद्य आदि से गणेश की षोडशोपचार पूजा की जाती है। श्रद्धालु भक्त नारियल, गुड़, मोदक, दुर्वा, घास और लाल गुड़हल के फूल मूर्ति को स्नेह के साथ समर्पित करते हैं।

मित्रों और पुरे परिवार के साथ सुबह शाम की संध्या आरती की जाती है। यह उत्सव जागरण भजन से साथ पुरे 10 दिन चलता है उसके बाद गणपति की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।

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