कुछ सहमति जताते हैं और कई असहमत हो जाते हैं अघोरी साधुओं के मुर्दों से यौनाचार के सवाल पर. इस विषय पर ज्यादा समझ न रखने वाले नौसिखियों के मन में सहमति और असहमति के गतिरोध से उपजी शंका घर कर जाती है.
अघोरियों का निवास स्थान शिव के भक्त के रूप में विख्यात काले वस्त्रधारी अघोरियों का निवास स्थान आम लोगों के निवास स्थान से काफी दूर होता है. नशे में धुत्त, लंबे काले बालों वाले अघोरी आम तौर पर श्मशान के समीप अथवा हिमालय की गुफाओं में निवास करते हैं
अघोरियों के भगवान ऐसा माना जाता है कि अघोरियों के आराध्य महाकाल अथवा शिव होते हैं. हालांकि, यह भी सत्य है कि वो मृत्यु की देवी शक्ति या माँ काली की पूजा भी करते हैं
माँ की इच्छा का पालन
अघोरियों का मानना है कि माँ काली की माँगों के अनुरूप ही वो मदिरा और माँस का सेवन करते हैं. इसके अलावा यौन संबंध भी वो अपने आराध्य की माँग पर ही बनाते हैं.
मुर्दों से यौनाचार क्यों?
दुनिया के लिए परलौकिक समझे जाने वाले इस कृत्य के पीछे उनकी मान्यकता है कि माँ शक्ति की माँग के अनुरूप वो इस कृत्य को अंजाम देते हैं. हालांकि, मुर्दों से यौन संबंध बनाने के दैरान भी उनके हृदय में अपने ईश्वर के प्रति अनुरक्ति ज्यों की त्यों बनी रहती है. इस दौरान अपने ईश्वर पर ही केंद्रित रहना उनकी विशेषता है.
एक अनोखा संबंध मुर्दों से संबंध बनाने से जुड़ा एक अनोखा रिवाज़ अघोरियों के मध्य प्रचलित है. जले हुए मुर्दों के बिखरी राखों के बीच इस रस्म को मनाने के लिए अघोरियों का जत्था जुटता है. जो महिला इस रस्म में शामिल होती है उसे राखों से पोत मंत्रोच्चारण के बीच ढ़ोल-नगाड़े बजाये जाते हैं. इस कृत्य के समय महिलायें रजोधर्म की अवस्था में होती है लेकिन बिना उनकी अनुमति के उन्हें इसमें शामिल नहीं किया जाता.
घृणा से रहते हैं दूर
अघोरी साधुओं का मानना है कि हृदय में घृणा को स्थान देने वाले एकाग्रता से ध्यानमग्न नहीं हो सकते. उनके एकमात्र उद्देश्य भगवान शिव से एकात्म है.
मृत्यु का भय नहीं अघोरियों के हृदय में मृत्यु का लेशमात्र भी भय नहीं होता. राख ठीस उसी प्रकार उनका वस्त्र होता है जैसा यह भोलेनाथ के लिये होता है. पंचतत्वों से बने होने के कारण राख मच्छरों और बीमारियों से उनकी रक्षा करता है.
कपाल है पहचान अघोरियों को कपाल से भी पहचाना जा सकता है. कपालें वो पहली चीज है जो वो मुर्दों से हासिल करते हैं. हिम जमी गंगा में नहाना उनकी दिनचर्या में शामिल है.
श्मशान में ध्यान
जिस श्मशान भूमि पर लोग रात के समय जाने से डरते हैं वही अघोरियों के ध्यान की भूमि होती है. स्वच्छ-अस्वच्छ, शुद्ध-अशुद्ध के नियमों को धता बताते हुए वो वहाँ शक्ति की आराधना में लीन होते हैं.
एक और पहचान
अघोरी साधु लोगों को अपवित्र वचन कहने, उन पर मल जैसी चीजें फेंकने लिए भी कुख्यात हैं.
पराग्रही भोजन अघोरियों का भोजन सामाज स्वीकृत नहीं है. उन्हें मल-मूत्र, कचड़ों से खाना निकाल कर खाते देखा जा सकता है. इसके पीछे उनका मानना है कि इससे सामान्य इंसानों द्वारा सौंदर्य के प्रति बनायी गयी अवधारणा को नष्ट किया जा सकता है. यह अघोड़ा बनने के लिये जरूरी भी है.
Source-jagran.com