आज 18 सितंबर इसी दिन इनका जन्म हुआ था । यह उनका 308वाँ जन्मदिन है इसका मतलब आज से ठीक 308 साल पहले दुनिया में मिस्टर जॉन्सन जैसे महान व्यक्ति ने जन्म लिया था जिनकी बदौलत आज अंग्रेजी सीखना केवल आसन हुआ है जबकि अधिकतर लोग अंग्रेजी को जानते और समझते भी है। अंग्रेजी पुरे विश्व में बोले जाने वाली भाषा है इसलिए सब इस वजह से सूचनाओ का आदान प्रदान भी कर पाते हैं तो हमें धन्यवाद् देना चाहिए डॉ॰ जॉन्सन का जिन्होने विश्व को अग्रेजी भाषा के शब्दकोश की मदद से अंग्रेजी से अवगत करवाया।
डॉ॰ जॉन्सन का जन्म सन् 18 सितम्बर 1709 ई. में लिचफील्ड में एक निर्धन पुस्तकविक्रेता के घर हुआ था। जीवन की प्रारंभिक अवस्था से ही उन्हें विषम परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा। दारिद्र्य की विभीषका परिवार पर सदा मँडराया करती। लिचफ़ील्ड के ग्रामर स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने आवसफोर्ड के पेंब्रोक कालेज में प्रवेश किया। लेकिन वहाँ ये केवल 14 महीने रह पाए और इन्हें बिना डिग्री लिए ही कालेज छोड़ देना पड़ा।
सन् 1731 ई. में इनके पिता की मृत्यु हो गई जिससे परिवार का आर्थिक संकट और भी अधिक बढ़ गया। स् 1735 ई. में इन्होंने श्रीमती एलिज़ाबेथ पोर्टर नाम की विधवा से बिवाह कर दिया जिनकी अवस्था इनसे काफी अधिक थी। इसी समय इन्होंने लिचफील्ड के पास एक निजी स्कूल भी प्रारंभ किया जो चल नहीं पाया। अंत में बाध्य होकर इन्होंने सन् 1737में लंदन के लिये प्रस्थान किया और साहित्य को जीवनयापन के माध्यम के रूप में अपनाया।
डॉ॰ जॉन्सन की प्रथम रचना, जिसने लोगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित किया, ‘लंदन’ शीर्षक कविता थी। पोप ने भी इनकी प्रंशसा की। सन् १७४४ में इन्होंने अपने मित्र रिचर्ड सैवेज की जीवनी लिखी। कतिपय प्रकाशकों के सुझाव पर इन्होंने अंग्रेजी भाषा का शब्द कोश बनाने कार्य हाथ में लिया।
प्रकाशन में सहायता मिलने की आशा से इन्होंने शब्दकोश की योजना लार्ड चेस्टरफील्ड के पास भेजी लेकिन जैसे प्रोत्साहन की अपेक्षा थी, वह मिला नहीं। सात साल के कठोर परिश्रम के बाद जब शब्दकोश प्रकाशित हुआ लार्ड चेस्टरफील्ड ने उसके संबंध में ‘वर्ल्ड’ नामक पत्रिका में दो पंशसात्मक पत्र लिखे।
डॉ॰ जॉन्सन ने इस थोथी प्रशंसा से चिढ़कर उन्हें जो उत्तर दिया वह न केवल उनके व्यक्तित्व की गरिमा एवं उनके आत्मसंमान के भाव का परिचायक है, वरन् भावुकता के क्षणों में उनकी भाषाशैली कितनी सरल, ओजस्वी एवं प्रवाहमय हो सकती थी, इसका भी प्रमाण प्रस्तुत करता है।
सन् 1749 ई. में इनकी कविता ‘वैनिटी ऑफ ह्यूमन विशेज’ प्रकाशित हुई। इसमें मनुष्य की विभिन्न आकांक्षाओं की निरर्थकता पर उदाहरण सहित विचार है। कार्डिनल ऊल्जे के पतन से शक्ति की निरर्थकता सिद्ध होती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलिलियो को भी अपने ज्ञान के लिये अत्याधिक मूल्य चुकाना पड़ा।
इनका एक नाटक ‘आइरीन’ लगभग इस समय प्रकाशित हुआ। उस समय के प्रख्यात अभिनेता डेविड गैरिक ने इसे रंगमंच पर प्रस्तुत किया और लेखक को इससे 300 पौंड मिले भी, लेकिन नाटकीयता की दृष्टि से वह असफल ही कहा जायगा। पूरा नाटक पात्रों के बीच नैतिक विषयों पर वार्तालाप के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
सन् 1759 में ‘रासेलाज’ नामक शिक्षापद रोमांस प्रकाशित हुआ जिसकी रचना इन्होंने एक सप्ताह में अपनी मृत माँ की अंत्येष्टि के व्यय तथा उनके लिया गया कर्ज चुकाने के निमित्त की थी। अबीसीनिया का युवराज रासेलाज़ राजसी सुखों से ऊबकर अपनी बहिन तथा एक वृद्ध एवं अनुभवी दार्शनिक के साथ मिस्र देश चला जाता है। उसका उद्देश्य जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का अनुभव प्राप्त करना है। एक साधारण कहानी के माध्यम से लेखक सुखी जीवन की खोज पर अपने विचार व्यक्त करता है।
डॉ॰ जॉन्सन ने ‘रैंबलर’ तथा ‘आइडलर’ नाम की दो पत्रिकाएँ भी एक के बाद दूसरी निकालीं। इनमें इनके निबंध प्रकाशित होते रहे। साहित्यालोचन के क्षेत्र में भी इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। शेक्सपियर पर विद्वत्तापूर्ण निबंध लिखने के अतिरिक्त इन्होंने अंग्रेजी कवियों के संबंध में ‘लाइव्स ऑव दि पोएट्स’ नामे एक रोचक ग्रंथ भी लिखा।
सन् 1762 में इनके लिये सौ पाडंड वार्षिक की पेंश स्वीकृत हुई और इन्हें आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिली। पेंशन के साथ अपनी लेखनीं को भी विश्राम दे दिया। जैसा इन्होंने स्वयं स्पष्ट शब्दों में कहा है, लेखन इनके लिये व्यवसाय मात्र था जिससे रोजी रोटी चलती थी। सन् 1764 में ‘लिटरेरी क्लब’ की स्थापना हुई जिसके सदस्यों में बर्कं, गोल्डस्मिथ, बॉस्वेल, गैरिक, गिवन और रेनाल्ड्स आदि थे। डॉ॰ जॉन्सन क्लब के एकछत्र सम्राट से थे। जेम्स वॉल्वेल ने इनकी दिन प्रति दिन की बातों के आधार पर इनका बृहत् जीवनवृत्तांत लिखा जो अंग्रेजी साहित्य की अक्षय निधि है। सन्1784 में इनकी मृत्यु हुई।
डॉ॰ जॉन्सन की प्रत्येक रचना में नैतिकता का स्पष्ट आग्रह देखने को मिलता है। ‘आइरीन’ तथा ‘रासेलाज़’ में कहानी गंभीर विचारों की अभिव्यक्ति का निमित्त मात्र है। संभवत: इसी कारण इनकी भाषा में भी कृत्रिम दुरूहता का दोष आ गया है। लेकिन जब कभी इन्होंने हृदय की सच्ची भावनाओं की अभिव्यक्ति की, इनकी शैली में प्रवाह और स्वाभाविकता का गुण आया।
जीवन में इन्हें बड़े संकट झेलने पड़े। फिर भी इनके स्वभाव में रुक्षता का दोष नहीं आया। सहानुभूति और उदारता के गुण इनमें कूट कूटकर भरे थे।18 वीं शताब्दी के अधिकांश साहित्य में हम सामाजिकता पर जोर पाते हैं। डॉ॰ जॉन्सन ने भी अपनी रचनाओं द्वारा व्यक्तिपक्ष की तुलना में सामाजिक पक्ष को महत्व दिया।