सबसे बड़ी बाधा थी कागजी कार्यवाही :
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अयोध्या के राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा गिराए जाने की मामले की अहम सुनवाई 25वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले यानी 5 दिसंबर से होगी इस मामले में सबसे बड़ी बाधा थी कागजी कार्यवाही का पूरा नहीं होना, जो अब पूरी हो चुकी है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष पीठ चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम के बीच बांटने का आदेश दिया था।
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12 हफ्ते में अंग्रेजी में अनुवाद करने का निर्देश:
अदालत ने सभी पक्षकारों को हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों का 12 हफ्ते में अंग्रेजी में अनुवाद करने का निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार को विभिन्न भाषाओं के मौखिक साक्ष्यों का अंग्रेजी में अनुवाद करने का जिम्मा सौंपा गया था।
भगवान राम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण और सीएस वैद्यनाथन तथा अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश होंगे और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश होंगे। अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाडे़ का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशील जैन करेंगे।
पूरी ज़मीन हिंदुओं को सौंपना चाहते हैं:
शिया वक्फ बोर्ड ने रामजन्मभूमि विवाद के समझौते के लिए आवेदन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सुलहनामा में कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है। तोड़ी गई इमारत शिया मस्ज़िद थी। हम देश के अमन चैन को ज़्यादा अहम मानते हैं। अयोध्या में विवादों में रही पूरी ज़मीन हिंदुओं को सौंपना चाहते हैं।
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इसके बदले अयोध्या में किसी मस्ज़िद का निर्माण भी नहीं करना चाहते। इस फॉर्मूले पर महंत नृत्य गोपाल दास, महंत नरेंद्र गिरी रामविलास वेदांती, सुरेश दास, धर्म दास जैसे सभी हिन्दू पक्षकार सहमत हैं। समझौता पत्र की कॉपी भी कोर्ट में जमा की गई है। इसमें इन सभी हिन्दू पक्षकारों के हस्ताक्षर हैं।
शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि दस सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय में मालिकाना हक संबंधी विवाद में दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद पूरा किया जाए। न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वह इस मामले को दीवानी अपीलों से इतर कोई अन्य शक्ल लेने की अनुमति नहीं देगा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया ही अपनाएगा।