1857 की क्रांति के विषय मे कहा जाता है कि 1857 की क्रांति की शुरुवात कुछ ब्रिटेश इंडियन आर्मी के भारतीय सैनिको के द्वारा किया गया विद्रोह था जिस को बंगाल और नॉर्थ इंडिय के कुछ हिस्से मे ही लड़ा गया था परंतु ये सत्य नही है| 1857 की क्रांति भारत के कुछ हिस्सो से निकाल कर कश्मीर से श्रीलंका , गुजरात से म्यांमार , नेपाल और भूटान तक फैल गयी थी|
इस क्रांति के कुछ मुख्य क्रांतिकारी थे –
1 – तात्या टोपे
तात्या टोपे ने कई स्थानों पर अपने सैनिक अभियानों द्वारा उत्तर प्रदेश, राजस्थान,मध्य प्रदेश और गुजरात आदि में अंग्रेज़ी सेनाओं से कड़ी टक्कर ली और उन्हें बुरी तरह परेशान कर दिया। गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाते हुए तात्या टोपे ने अंग्रेज़ी सेनाओं के छक्के छुड़ा दिये। वे ‘तांतिया टोपी’ के नाम से भी विख्यात थे। अपनी अटूट देशभक्ति और वीरता के लिए तात्या टोपे का नाम भारतीय इतिहास में अमर है।
तात्या टोपे की मृत्यु से सम्बन्धित तथ्य –
– इस वीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने तात्या के साथ धोखा करके उन्हें पकड़ा था। बाद में अंग्रेज़ों ने उन्हें फ़ाँसी पर लटका दिया, लेकिन खोज से ये ज्ञात हुआ है कि फ़ाँसी पर लटकाया जाने वाला कोई दूसरा व्यक्ति था, तात्या टोपे नहीं। असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहे। ऐसा कहा जाता है कि 1862-1882 ई. की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी तात्या टोपे ‘नारायण स्वामी’ के रूप में गोकुलपुर, आगरा में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई महिने रहे थे।
– भारत में 1857 ई. में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता तात्या टोपे के बारे में भले ही इतिहासकार कहते हों कि उन्हें 18 अप्रैल, 1859 में फ़ाँसी दी गयी थी, लेकिन उनके एक वंशज ने दावा किया है कि वे 1 जनवरी, 1859 को लड़ते हुए शहीद हुए थे। तात्या टोपे से जुड़े नये तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘टोपेज़ ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे के अनुसार- “शिवपुरी में 18 अप्रैल, 1859 को तात्या को फ़ाँसी नहीं दी गयी थी, बल्कि गुना ज़िले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए 1 जनवरी, 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।” पराग टोपे के अनुसार- “इसके बारे में अंग्रेज़ मेजर पैज़ेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब ‘ऐंड कंटोनमेंट : ए जनरल ऑफ़ लाइफ़ इन इंडिया इन 1857-1859’ के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफ़ेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।” उन्होंने दावा किया कि टोपे के शहीद होने के बाद देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अप्रैल तक तात्या टोपे बनकर लोहा लेते रहे। पराग टोपे ने बताया कि तात्या टोपे उनके पूर्वज थे। उनके परदादा के सगे भाई।
2 – नाना साहब
पेशवा बाजीराव द्वितीय जिस समय दक्षिण छोड़कर गंगा तटस्थ बिठूर, कानपुर में रहने लगे थे, तब उनके साथ दक्षिण के पं. माधवनारायण भट्ट और उनकी पत्नी गंगाबाई भी वहीं रहने लगे थे। इसी भट्ट दम्पत्ति से सन् 1824 में एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जो भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में अपने अनुपम देशप्रेम के कारण सदैव अमर रहेगा। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने पुत्र हीन होने के कारण इसी बालक को गोद ले लिया था। कानपुर के पास गंगा तट के किनारे बिठुर (कानपुर) में ही रहते हुए, बाल्यावस्था में ही नाना साहब ने घुड़सवारी, मल्लयुद्ध और तलवार चलाने में कुशलता प्राप्त कर ली थी।
3 – रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं, जिन्होंने अपने रक्त से देश प्रेम की अमिट गाथाएं लिखीं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने न केवल भारत की बल्कि विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। उनका जीवन स्वयं में वीरोचित गुणों से भरपूर, अमर देशभक्ति और बलिदान की एक अनुपम गाथा है।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। –सुभद्रा कुमारी चौहान
4 – बेगम हज़रत महल
बेगम हज़रत महल अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली पत्नी थीं। इन्होंने लखनऊ को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए भरसक प्रयत्न किए और सक्रिय भूमिका निभाई। यद्यपि वे एक रानी थीं और ऐशो आराम की जिन्दगी की अभ्यस्त थीं| लखनऊ में ‘1857 की क्रांति’ का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया| आलमबाग़ की लड़ाई के दौरान अपने जांबाज सिपाहियों की उन्होंने भरपूर हौसला आफज़ाई की और हाथी पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ दिन-रात युद्ध करती रहीं।
5 -बाबू कुंवर सिंह
आरा में आन्दोलन की कमान कुंवर सिंह ने संभाल ली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकरसहसराम और रोहतास में विद्रोह की अग्नि प्रज्ज्वलित की। उसके बाद वे 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुँचे और वहाँ के ज़मींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। वहाँ से बांदा होते हुए कालपी और फिर कानपुरपहुँचे। तब तक तात्या टोपे से उनका सम्पर्क हो चुका था। कानपुर की अंग्रेज़ सेना पर आक्रमण करने के बाद वे आजमगढ़ गये और वहाँ के सरकारी ख़ज़ाने पर अधिकार कर छापामार शैली में युद्ध जारी रखा। यहाँ भी अंग्रेज़ी सेना को पीछे हटना पड़ा।
6 – राव तुलाराम
राव तुलाराम 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। इनका जन्म हरियाणा राज्य के रेवाड़ी शहर में एक यादव परिवार में 09 दिसम्बर1825 को हुआ। इनके पिता का नाम राव पूरन सिंह तथा माता जी का नाम ज्ञान कुँवर था। इनके दादा का नाम राव तेज सिंह था। अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के उद्देश्य से एक युद्ध लड़ने के लिए मदद लेने के लिए उन्होंने भारत छोड़ा तथा ईरान और अफगानिस्तान के शासकों से मुलाकात की, रूस के ज़ार के साथ सम्पर्क स्थापित करने की उनकी योजनाएँ थीं। इसी मध्य 38 वर्ष की आयु में 23 सितंबर 1863 को काबुल में उनकी मृत्यु हो गई
…क्रमशः
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