एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसने स्वाधीनता-संग्राम को एक नई दिशा दी। वो शख्स जिसे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने के कारण अंग्रेजों द्वारा ‘दोहरे आजीवन कारावास’ की सजा सुनाकर अंडमान-निकोबार की जेल में रखा गया। जहां अंग्रेजों द्वारा उन्हें यातनाएं दी गई थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं स्वाधीनता-संग्राम के तेजस्वी सेनानी वीर सावरकर की। आज हम आपको वीर सावरकर के बारे में बता रहे हैं।
सावरकर ऐसे पहले नेता थे, जिन्होंने साहसपूर्वक पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता को भारत का लक्ष्य बताया और स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छेड़ा था।
नौ वर्ष की आयु में हुआ था माता-पिता का देहांत
क्रांतिकारी वीर सावरकर का जन्म 28 मई, सन 1883 को नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था | उनके पिता दामोदर सावरकर एवं माता राधाबाई दोनों ही धार्मिक विचारधारा के थे। जब वीर सावरकर मात्र नौ वर्ष के थे तब उनकी माता की हैजे से और 1899 में प्लेग से पिता की मौत हो गई थी। जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाई में बीता।
जेल की दीवारों पर लिखी थी कविताएं
जेल में रहते हुए अंग्रेज़ सावरकर के आंदोलनों को ख़त्म करने के लिए प्रताड़ित करते थे। लेकिन इन प्रताड़नाओं का सावरकर पर कोई असर नहीं होता था। जेल में कागज़-कलम न होने के कारण वे जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखा करते थे।
इस जेल में पहले सात विंग हुआ करते थे, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस जेल की पांच विंग को बम से तोड़ दिया गया, अब यहां केवल तीन विंग हैं
अंडमान निकोबार जेल के अन्दर का नज़ारा
अंग्रेजों को भगाने जापान ने सन 1942 में अंडमान-निकोबार जेल पर हमला कर दिया था, जिसके बाद यहां जापानी बंकर बनाया गया था
वीर सावरकर ने 29 जून सन 1909 को यह पत्र स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्णा को लिखा था
सन 1943 में लिया गया वीर सावरकर के पंजे का निशान
अंग्रेजों ने वीर सावरकर को इसी सेल में रखा था
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