पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण प्रकांड पंडित होने के साथ ही नीति-राजनीति का ज्ञाता था। रावण, जिसे पूरा विश्व राक्षस राजा के नाम से जानता है, वह एक महापंडित था। महापंडित रावण ने लक्ष्मण कोतीन बातें बताई जो जीवन में सफलता की कुंजी है।
उसके तप में जो कठोरता थी, जो अग्नि थी वह शायद ही उस काल के किसी अन्य ऋषि-मुनि एवं पंडित में थी। कठोर तपस्या के मार्ग से ही रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया।
दुनिया पर राज करने के लिए रावण ने तपस्या का मार्ग चुना, दिन-रात शिव जी का जाप किया। आखिरकार वर्षों की तापस्या पूर्ण करके रावण ने शिवजी का वरदान पाया। लेकिन वो कहते हैं ना यदि भगवान विवश होकर बुराई को भी वरदान देते हैं तो उसके अंत के लिए भी पहले से ही मार्ग चुन लेते हैं।
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वनवास के दौरान लंकापति रावण सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। बस यहीं से रावण का बुरा समय आरंभ हो गया। श्रीराम नहीं जानते थे कि सीता कहां हैं? लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें मालूम हुआ कि लंकापति रावण उन्हें ले गया है। लंका का रास्ता खोजने में हनुमानजी और वानर सेना ने उनकी सहायता की। आखिरकार वे लोग पत्थरों का पुल बनाकर लंका पहुंचे।
श्रीराम ने रावण को कुछ शांति संदेश भिजवाए और कहा कि वो सीता को छोड़ दे। लेकिन रावण ने अहंकारवश उसे स्वीकार नहीं किया फिर भीषण युद्ध हुआ,एक ओर वानर सेना और दूसरी ओर राक्षसी सेना। युद्ध के कुछ दिनों में ही रावण के पुत्र, भाई कुम्भकर्ण और अन्य राक्षस मारे गए। इधर वानर सेना का भी भारी नुकसान हुआ।लेकिन आखिरी दिन वह था जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हुआ।
रावण ने अपनी दैत्य शक्तियों का भरपूर उपयोग किया लेकिन श्रीराम के वार को वह सह ना सका और अंत में अपना आखिरी श्वास लेता हुआ धरती पर जा गिरा।
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जिस समय रावण मरणासन्न अवस्था में था, उस समय भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए।
रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मणजी वापस रामजी के पास लौटकर आए। तब भगवान ने कहा कि यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर की ओर। यह बात सुनकर लक्ष्मण जाकर इस रावण के पैरों की ओर खड़े हो गए। उस समय महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताई जो जीवन में सफलता की कुंजी है।
1. शुभ कार्य जितनी जल्दी हो सके कर लें:
रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। मैंने श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई।
2. शत्रु को कभी हीन समझने की गलती न करें:
यह कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, मैं यह भूल कर गया। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था।मुझे लगा कि उन्हें हराना मेरे लिए काफी आसान होगा, लेकिन यही मेरी सबसे बड़े भूल थी
3.अपना राज भूल कर भी किसी को न बताएं:
रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था। ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।