मुर्तजा हुसैन बिलग्रामी की पुस्तक ‘हदिकतुल अकालीम’ में दर्ज कहानी के अनुसार अकबर अपने पूर्व जन्म में मुंकुंद ब्रह्मचारी नाम का संन्यासी था। ऐसा माना जाता है कि अकबर ने अपने पूर्व जन्म में इस शपथ के साथ प्रयाग में तपस्या की थी। कि अगले जन्म में वह एक शक्तिशाली क्षत्रिय राजा के रूप में पैदा हो, और वह भारत में जड़े जमा रहे इस्लाम धर्म को उखाड़ फेंके।
लेकिन दुर्भाग्यवस उसकी तपस्या में कुछ कमी रह जाने के कारण उसका जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ। लेकिन अपने पूर्वजन्म के संस्कारों के चलते अकबर का व्यवहार हिंदुओं की तरह ही था। कुछ विद्वानों का मानना है कि उस समय बहुत से हिंदू अकबर के दर्शन के बगैर नाश्ता तक नहीं करते थे।
अकबर का जन्म-
-अकबर का जन्म अमरकोट (सिंध) के राना वीरसाल के महल में हुआ था। उस समय हुमायूं वहां पर मौजूद नहीं था। इसलिए ऐसी मान्यता है कि बालक के जन्म की खुशियां हिंदू धर्म के अनुसार मनाई गई होंगी।
यही कारण था कि उस समय अकबर को सिर्फ हिंदू जनता ही नहीं अपितु राजा, महाराजा और उस दौर के महान विद्वान भी अपने में से एक समझते थे। और उसका मुख्य कारण अकबर की हिंदू धर्म के प्रति गहरी आस्था थी।
अमृतलाल नागर द्वारा रचित उपन्यास “मानस का हंस” (पृष्ठ संख्या117) पर संत तुलसीदास को अकबर की जन्मपत्री पढ़ते दिखाया गया है। यह जाने बिना ये राशिचक्र किसका है। तुलसीदासजी ने भविष्यवाणी भी की थी कि “यह रामजी का आदमी है और इस संसार में उन्हीं का काम करने के लिए इसने जन्म लिया है।” अतः संभव है कि अकबर की जन्मपत्री राजा वीरसाल ने बनवाई हो।