इतिहास
दशग्रंथी ब्राह्मण रावण की हत्या के पश्चात अगस्त्य ऋषि ने प्रभु श्रीराम को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी के मुहुर्त पर ब्रह्महत्या निरसनार्थ सागर किनारे शिवलिंग की स्थापना करने का आदेश दिया। उस कार्य हेतु शिव का दिव्य लिंग लाने के लिए मारुति कैलास पर्वत पर गए; किंतु शिव का दर्शन न होने के कारण उन्होंने तप आरंभ किया। कालांतर के पश्चात शिव ने प्रगट होकर हनुमंत को अपना दिव्य लिंग प्रदान किया। इस प्रक्रिया में विलंब होने से मारुति के लिए मुहुर्त पर उपस्थित होना संभव नहीं हो पाया।
अतः उस समय सीता ने बालुकामय लिंग बनाया। ऋषियोंके आदेशानुसार राम ने उस लिंग की ही स्थापना की। यही रामेश्वर लिंग है। स्थानीय लोग उसे ‘रामनाथ स्वामी’ कहते हैं। लौटने के पश्चात मारुति को जब यह बात ज्ञात हुई कि श्रीराम ने लिंग स्थापित कर लिया है, तब उन्हें अत्यंत दुःख हुआ। अतः राम ने उन्हें स्थापित लिंग के निकट ही उनके द्वारा लाए गए लिंग की स्थापना करने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि उनकेद्वारा स्थापित लिंग का दर्शन किए बिना यात्रियोंको रामेश्वर दर्शन का लाभ प्राप्त नहीं होगा। यह लिंग ‘काशीविश्वनाथ’ अथवा ‘हनुमदीश्वर’ नाम से विख्यात/जाना जाता है।
२. क्षेत्रमहिमा
उत्तर भारत में जो धार्मिक महत्त्व काशी का है, वही महत्त्व दक्षिण भारत में रामेश्वर का है। धर्मग्रंथ के अनुसार काशी की तीर्थयात्रा बंगाल के उपसागर(महोदधि) तथा हिन्द महासागर (रत्नाकर) के संगम पर स्थित धनुषकोडी में स्नान करने, तदनंतर काशी के गंगाजल से रामेश्वर को अभिषेक करने के पश्चात ही पूर्ण होती है।
काशीयात्रा को पूर्णता प्रदान करनेवाला तीर्थस्थान
उत्तर भारत में जो धार्मिक महत्त्व काशी का है, वही महत्त्व दक्षिण भारत में रामेश्वर का है। धर्मग्रंथ के अनुसार काशी की तीर्थयात्रा बंगाल के उपसागर(महोदधि) तथा हिन्द महासागर (रत्नाकर) के संगम पर स्थित धनुषकोडी में स्नान करने, तदनंतर काशी के गंगाजल से रामेश्वर को अभिषेक करने के पश्चात ही पूर्ण होती है।
चारधाम यात्रा में से एक धाम
रामेश्वरम्, यह हिन्दुओंकी पवित्र चारधाम यात्रा में से दक्षिणधाम है। हिन्दुओंकी जीवनयात्रा की पूर्णता बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी तथा रामेश्वरम् इन चार धामोंकी यात्रा के पश्चात ही होती है।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
रामेश्वरम्, यह तीर्थक्षेत्र भारतवर्ष के १२ प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
मंदिर के विशेषतापूर्ण स्थान
रामेश्वर (रामनाथस्वामी) : सीताद्वारा रेत से बनाया गया यह शिवलिंग मुख्य दर्शनस्थान है।
विश्वनाथ (हनुमदीश्वर) : यह हनुमंत द्वारा लाया गया शिव का आत्मलिंग है।
आत्मलिंगेश्वर : प्रभु श्रीराम के लिए पूजा हेतु आत्मलिंग की मांग करते समय हनुमंत ने शिव से स्वयं के लिए भी एक आत्मलिंग की मांग की। इस शिवलिंग को आत्मलिंगेश्वर के रूप में जाना जाता है।
नंदीदेव : रामेश्वरलिंग के समक्ष ही मृण्मय (मिट्टी से बनाई) तथा श्वेतवर्णीय नंदीदेव की बडी प्रतिमा है। इस प्रतिमा की ऊंचाई २२ फीट तथा लंबाई १७ फीट है। उसके लिए मंदिर में ही एक मंडप है। इस नंदी की ऊंचाई, लंबाई तथा चौडाई में प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। हाल ही में उस का मस्तक मंडप की छत तक जा पहुंचा है। १९७४ में इस नंदी की ऊंचाई १३ फीट तथा लंबाई ८ फीट थी।
गरुडस्तंभ : नंदीदेव के निकट ही सुवर्णपत्र से आच्छादित गरुडस्तंभ है।
आंजेयन मंदिर : यहां हनुमंत की १६ फीट लंबी स्वयंभू प्रतिमा है। उसके नीचे के ८ फीट का हिस्सा हिन्द महासागर में है तथा ऊपरवाले ८ फीट के हिस्से का दर्शन मंदिर में होता है। (मंदिर सागर किनारे पर होने के कारण मंदिर के नीचे के हिस्से में समुद्र का पानी है।)
२२ तीर्थ : रामेश्वर के मंदिर में कुल मिलाकर २२ तीर्थ हैं। उनमें से ६ तीर्थ सब से बाहर की ओर अर्थात तीसरे दालान में हैं। इन सभी तीर्थों में स्नान करने के पश्चात ही रामेश्वर के पूजन, अर्चन तथा दर्शन प्राप्त करने की परंपरा है।
रामकुंड, सीताकुंड तथा लक्ष्मणकुंड : ये कुंड मंदिर के बाहर हैं। इन कुंडोंपर यात्री स्नान, श्राद्धविधि इत्यादि धार्मिक कृत्य करते हैं।
श्रद्धालु यात्री यहां के सर्व तीर्थों में क्रम से स्नान करते हैं। तत्पश्चात काशी से लाए गए गंगाजल से अभिषेक करते हैं। साथ ही रामेश्वरम् से बारह मील की दूरी पर विद्यमान सेतुबांध की बालू लेकर आते हैं तथा उस बालू को रामेश्वर मंदिर के बालुकामय माधव के निकट रखकर उसकी पूजा करते हैं। यह बालू प्रयाग के त्रिवेणीसंगम में विधिपूर्वक विसर्जित करने के पश्चात ही यह यात्रा पूर्ण होती है।
सांप्रदायिक एकता का प्रतीक
भारत के सर्व धर्मस्थलोंका शैव एवं वैष्णव संप्रदाय में विभाजन हुआ है। किंतु रामेश्वरम् इसका अपवाद है; क्यों कि रामेश्वरम् शैव एवं वैष्णव इन दोनों संप्रदायोंके लिए वंदनीय है। विष्णु का सातवां अवतार प्रत्यक्ष प्रभु श्रीरामद्वारा रामेश्वरम् की स्थापना करने के कारण यह स्थान शैवक्षेत्र होकर भी वैष्णवोंके लिए वंदनीय है। प्रभु श्रीरामद्वारा इसकी स्थापना करने के कारण इस शिवलिंग को ‘रामेश्वर’ कहते हैं।
राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
रामायण की कालावधि से आज तक रामेश्वरम् भारत की एकात्मता का प्रतीक दर्शानेवाला पुण्यस्थल है; क्यों कि काशी के विश्वेश्वर की यात्रा रामेश्वर दर्शन के बिना पूर्ण नहीं होती। इससे यह ध्यान में आता है कि हिन्दू धर्म में भारत को एक सूत्र में गूंथने की अद्भुत परंपरा है। इस परंपरा के कारण यहां बारह मास (निरंतर) यात्रियोंकी भीड रहती है तथा अनंत आपत्ति आने के पश्चात् भी सहस्रों वर्ष से आसेतुहिमाचल भारतवर्ष का एकात्म निभाए रखा है।
Source-hindujagrati.org