अहोई अष्टमी कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानि दिवाली से सिर्फ 7 दिन पहले और करवा चौथ के 4 दिन बाद मनाया जाता है।इस बार अहोई अष्टमी 12 अक्टूबर 2017 को है।
यह व्रत खासतौर पर संतान की रक्षा और उसके कल्याण के लिए किया जाता है। इसे वे स्त्रियां ही करती हैं, जिनके संतान होती है। लेकिन जिन माताओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वो भी इस व्रत को कर मां अहोई से संतान की मनोकामना करती हैं।
अहोई व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती है। अहोई अष्टमी के दिन औरतें पूरा दिन व्रत रखती है और शाम को चन्द्रमा या तारे की पूजा करके व्रत को खोलती है।
इस दिन भी करवा लेकर पूजा की जाती है।पूजा खत्म हो जाने के बाद अपनी सांस या घर के बुजुर्गों को ये करवा दिया जाता है। करवा पर साड़ी शगुन के पैसे और भोजन देकर पुण्य कमाया जाता है। ऐसा करने से माता अहोई खुश होकर बच्चों की रक्षा करती है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5:50 मिनट से लेकर 07:06 मिनट तक है। तारों का उदय शाम 6:18 से और चन्द्रोदय रात्रि 11: 53 मिनट पर होगा।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
शाम को दिवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आज-कल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र भी मिलते हैं, जिनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।
पूजा स्थान को साफ कर वहां कलश की स्थापना करें. व्रती महिलाएं इस दिन सुबह उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं।
अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहा जाता है। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।
पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के पश्चात सासु मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।पूजन के बाद अहोई माता को दूध और चावल का भोग लगाया जाता है।
घर की बड़ी औरत या दादी को अहोई अष्टमी व्रत कथा परिवार के सामने पढनी चाहिए। कथा समाप्त होने के बाद परिवार के सदस्यों में प्रसाद को बांटना चाहिए।
जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।