“बेटियां हक से मां-बाप के बेटे का फ़र्ज़ अदा कर जाती हैं, लेकिन मां-बाप चाहकर भी एक बेटे से बेटियों वाला सुख प्राप्त नहीं करते”।
ऐसा नही है कि बेटियां वह सब कुछ नहीं कर सकतीं जो एक बेटा करता है। आज के युग में ऐसा कोई काम नहीं जो नारी के वश में नहीं। नारी स्वतंत्र है, आत्म निर्भर है, वह अपना सुख-दुख जानती है और समझती भी है… लेकिन जब मां-बाप का बेटा बनने की बात आती है तो क्या वह उसे पूरा कर पाती है?
क्योंकि एक बात उसे वह फर्ज़ पूरा करने से रोकती है, वह है उसकी शादी। आप किस समाज में हैं, किस सोसाइटी स्टेटस को फॉलो करते हैं,ये बात उतनी मायने नही रखती लेकिन अमूमन जो बात देखी गयी है वह यही है कि बेटियां चाहती तो हैं मां-बाप का बेटा बनना, लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है।
शादी के बाद उसे नया घर, नए लोग और एक जीवनसाथी मिलता है। मॉडर्न सोसाइटी में भले ही उसे अपने मायके की देख-रेख और उनसे हरदम जुड़े रहने का मौका मिलता है, लेकिन ऐसा हर जगह नहीं होता।
मध्य वर्गीय सोसाइटी की बात करें तो यहां बेटियां जब बहू बन जाती हैं तो उनका नया घर ही उनका संसार होता है। बेशक वे जॉब फील्ड में हों, कुछ मायनों में स्वतंत्र भी हों… फिर भी समाज उन्हें पूर्ण रूप से मां-बाप का बेटा नहीं बनने देता। वे चाहकर भी एक बेटे की तरह अपने मां-बाप के पास जीवन भर नहीं रह सकतीं, उन्हें आर्थिक मदद नहीं कर सकतीं या यूं कहें कि जो काम एक बेटा कर सकता है वह सभी वे नहीं कर सकतीं।
तो क्या अब भी आप कहेंगे कि बेटियां बेटा बन सकती हैं? यकीनन बन सकती हैं, यदि समाज उन्हें ऐसा करने से ना रोके… ।