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देश को एकता के सूत्र मे पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल 2

देश को एकता के सूत्र मे पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल ( 31 अक्टूबर, 1875 – 15 दिसम्बर, 1950) भारतके स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री थे। सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे।

भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्हे भारत का ‘लौह पुरूष’ भी कहा जाता है।

भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल की 139वीं जयंती पर देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। सरदार पटेल के धैर्यवान और दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बंटे भारत को एकजुट किया जा सका था। लौहपुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल ने कैसे आजाद भारत का सपना साकार किया, इसी पर खास पेशकश-सरदार।

आज हम जो भारत देख रहे हैं वो भारत नहीं होता अगर 67 साल पहले एक भारत-श्रेष्ठ भारत के मिशन की कमान उस शख्स के हाथ में न होती, जिसे देश कहता है सरदार। लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल। आजादी से पहले भारत में दो तरह का शासन था। भारत का एक हिस्सा वो था जिसपर अंग्रेजों का सीधा शासन था। देश का बाकी हिस्सा 562 से ज्यादा रियासतों और रजवाड़ों के रूप पर था, जहां अंग्रेजों के अधीन राजाओं और नवाबों का शासन था। अंग्रेजों ने जब बंटवारे के जरिए भारत को आजादी दी तो रजवाड़ों को दो विकल्प दिए।

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पहला विकल्प भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ विलय का था। दूसरा विकल्प आजाद देश के रूप वजूद में आने का था। अपनी शानशौकत और अपनी जनता पर जुल्म ढाने के लिए बदनाम बहुत से राजा और नवाब भारत की आजादी के बाद स्वतंत्र होना चाहते थे। कुछ ऐसे भी थे जो पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे। लिहाजा आजादी के वक्त एक राष्ट्र के तौर पर भारत को नया रूप देने की भारी जिम्मेदारी सरदार पटले के कंधे पर थी। सरदार पटेल ने जिस सूझबूझ और कूटनीति से बिना किसी खूनखराबे के भारत को एक किया-उसकी तुलना जर्मनी के शासक ओटो वान बिस्मार्क से की जाती है, जिसने 1860 में जर्मनी का एकीकरण किया था।

6 मई 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों और रजवाड़ों का भारत में विलय का मुश्किल मिशन शुरू किया। गांधी जी की सलाह पर उन्होंने तबके वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन को गृहमंत्रालय का मुख्य सचिव बना कर रियासतों से भारत में विलय के मुद्दे पर बातचीत शुरू की। पटेल ने ताकत का इस्तेमाल करने के बजाए-कूटनीति और बातचीत का सहारा लिया।

लय के बदले सरदार पटेल ने रियासतों के वशंजों को प्रिवी पर्सेज के जरिए नियमित आर्थिक मदद का प्रस्ताव रखा। रियासतों से उन्होंने देशभक्ति की भावना से फैसला लेने को कहा। साथ में उनके सामने 15 अगस्त 1947 तक भारत में शामिल होने की समय सीमा भी तय कर दी।

साथ ही इशारों-इशारों में ये भी साफ कर दिया कि वो अपनी मकसद में ताकत का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकेंगे। साम-दाम-दंड-भेद की पटेल की इस कूटनीति ने जल्दी ही रंग दिखाना शुरू कर दिया-धीरे-धीरे रजवाड़ों ने भारत में शामिल होना शुरू कर दिया।

काठियावाड़ की प्रसिद्ध रियासत है भावनगर। हिंद सरकार के उप प्रधानमंत्री सरदार हवाई जहाज से सौराष्ट्र के संयुक्त राज की स्थापना के अवसर पर यहां आए। अनगिनत नगरवासी सरदार पटेल की सवारी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल नावा नगर के जाम साहब के साथ राजकीय गाड़ी में दरबार भवन गए। राजप्रमुख नावानगर के जाम साहब ने भरे दरबार में काठियावाड़ की पांच रियासतों के राजाओं से हिंद यूनियत के प्रति राज निष्ठा की शपथ ली।

तीन रियासतें नहीं थीं तैयार

15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तब तक तीन रियासतें ऐसीं थीं जिनका भारत में विलय नहीं हुआ था। ये रियासतें थीं जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर। बंटवारे के वक्त देश में जैसा माहौल था उसमें तीनों रियासतों को सिर्फ ताकत से ही भारत में नहीं मिलाया जा सकता था। एक कुशल राजनेता की तरह सरदार पटेल ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपना कर कैसे इन रियासतों का भारत में विलय कराया।

15 अगस्त को भारत को आजादी के साथ बंटवारे का जख्म भी मिला। सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा देश सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी का सामना कर रहा था। इस मौके पर जूनागढ़ के नवाब में पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया। हैदराबाद के निजाम ने आजाद रहने का फैसला किया था। जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह कोई भी फैसला नहीं ले पाए थे।

जम्मू-कश्मीर के राजा हिंदू थे लेकिन बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम थी, जबकि जूनागढ़ और हैदराबाद के शासक मुस्लिम थे-लेकिन उनकी बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी। सांप्रदायिक हिंसा के माहौल में इन रिसायतों को लेकर कोई भी गलत फैसलाबड़ी आफत को दावत दे सकता था। लिहाजा, सरदार पटेल ने बहुत धीरज से काम लिया। वहीं जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का उतावलापन उसकी गलती साबित हुआ। काबयलियों के भेष में जब पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर पर हमला किया तो 25 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय का फैसला कर लिया। इसमें कश्मीरियों के बड़े नेता शेख अब्दुल्ला की सहमति भी शामिल थी, जो पटेल की बहुत बड़ी जीत थी।

आजादी के बाद भारत में विलय होने वाली दूसरी रियासत जूनागढ़ थी जो चारों तरफ से भारत से घिरा था, लिहाजा पटेल ने जूनागढ़ को तेल-कोयले की सप्लाई, हवाई-डाक संपर्क रोक कर आर्थिक घेरेबंदी कर दी। जूनागढ़ की जनता भी नवाब के खिलाफ विद्रोह पर उतर आई थी। आखिरकार, 26 अक्टूबर 1947 को जूनागढ़ का नवाब परिवार समेत पाकिस्तान भाग गया।

7 नवंबर 1947 को जूनागढ़ को औपचारिक तौर पर भारत में शामिल कर लिया गया। जूनागढ़ के विलय में सरदार पटेल की खास दिलचस्पी छुपी भी नहीं थी क्योंकि यहीं पर प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर था। 12 नवंबर को जब पटेल जूनागढ़ पहुंचे तो उन्होंने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार शुरू कराने का आदेश भी दिया। गांधी जी के निर्देश के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए सरदार पटेल ने आम लोगों के दान से धन जुटा कर सांप्रदायिक सद्भाव का पैगाम दिया।

हैदराबाद के विलय की योजना में भी सरदार पटेल ने सांप्रदायिक सद्भाव का खास ख्याल रखा। 87 फीसदी हिंदू आबादी वाले हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान विलय न करने पर अड़ा था। वहीं उसके उकसावे पर कासिम रिजवी नाम के शख्स की भाड़े की सेना हैदराबाद की जनता पर अत्याचार कर रही थी। इस हालात में 13 सितंबर 1948 में सरदार पटेल ने भारतीय फौज को हैदराबाद पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया। ऑपरेशन पोलो के तहत भारतीय सेना ने दो ही दिन में हैदराबाद पर कब्जा कर लिया। कूटनीतिक चालाकी से उन्होंने निजाम को भी साथ मिला लिया ताकि देश का सांप्रदायिक माहौल ना बिगड़े-विलय पर पाकिस्तान के ऐतराज की हवा भी निकल जाए।

Source- Ibnlive.com

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