1. भोजन:-
25 प्रतिशत रोग भोजन के कारण होते है। जैसे – 1. जरुरत से अधिक मात्रा में भोजन करना। 2. स्वादिष्ट चीजों का अधिक मात्रा में सेवन करना। 3. तली हुई चीजांे का सेवन करना। 4. मिर्च-मसाले अधिक सेवन करना। 5. चबा-चबा कर भोजन नहीं करना। 6. सलाद रस और फल शाक का कम सेवन करना। 7. पानी कम पीना या सही तरीके से नहीं पीना।
2. व्यायामः-
1. व्यायाम बिल्कुल नहीं करना। 2. बहुत अधिक व्यायाम करना। 3. प्रातःकाल उठ कर व्यायाम अवश्य करने से रोग 25 प्रतिशत कम हो जाते है। 4. योगासन और शवासन दोनो का समान अभ्यास करना।
3. भावनाएं:-
संकल्प शक्ति और भाव प्रधानता जीवन में स्वस्थ रहने का बहुत बड़ा सूत्र है। 1. सद्भावनाओं से व्यक्ति बीमार कम होता है, अर्थात सद्भावी व्यक्ति सदा सुखी और निरोगी रहता है। 2. सेवाभाव से निरोगी रहता है। 3. क्रोधभाव ईष्र्याभाव निन्दाभाव घृणा भाव एवं अहंकार भाव मनुष्य को निश्चित ही रोगी बनाते है। यह मेंरा दृढ़ मत है।
4. प्रारब्ध:-
जन्मान्तरीय पाप कर्म और इस जीवन में जीवित रहते मन वचन और कर्म से किये जाने वाले हीन कार्यों और अनुचित अहार विहार और जीव हत्या और विनाशकारी विचारों के अतिप्रभाव के कारण व्यक्ति का प्रारब्ध कमजोर हो जाता है। और इस कारण कैंसर जैसे रोगो की उत्पति होती है।
परन्तु व्यक्ति अगर आयुर्वेद की शरण में आता है तो दर्द रहित आनन्दपूर्वक उर्जावान विचारों से ओतप्रोत रहकर शेष जीवन सुख से व्यतीत कर सकता है।
5. जिवाणु, विषाणु, अण्डाणु, कीटाणु, फफूॅद:-
आज विज्ञान ने इनका पता लगाकर हमें इनसे बचने के बहुत महगें-2 तरीके बताए है परन्तु आयुर्वेद में हजारों वर्ष पूर्व ही इन पर प्रकाश डाला है यदि हम तुलसी, पीपल, बील, ग्वारपाठा, कालीमिर्च, गोमुत्र इत्यादि औषधियों के सामान्य उपयोग को अगर दिनचर्या का हिस्सा बनालें तो यह हमें बेक्टीरिया फंगस वाईरल निमेंटोड आदि के प्रकोप से बचा सकता है