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रानी पद्मिनी

फिक्शन नहीं शौर्य का प्रतीक हैं रानी पद्मिनी

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रानी पद्मिनी का जीवन परिचय:-

रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की अद्वितीय सुंदरी राजकन्या तथा चित्तौड़ के राजा भीमसिंह अथवा रत्नसिंह की रानी थी। उनके रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है।

बताया जाता है कि उस समय के एक जैन तांत्रिक राघव चेतन जो दिल्ली दरबार से सम्मानित थे, ने पद्मिनी की सुंदरता से दिल्ली के तत्कालीन शासक अलाउद्दीन खिलजी को बताया था। इसके बाद खिलजी इतना मोहित हो गया कि उसने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। पद्मिनी को पाने की चाहत मे उसने करीब 6 महीने तक चित्तौड़गढ़ के किले के चारों ओर डेरा डाले रहा। उसने धोखे से रतन सिंह को बंदी बनाया और पद्मिनी को मांगा लेकिन पद्मिनी ने इसकी जगह जौहर कर लिया। उनके साथ 16000 अन्य राजपूत रमणियों ने भी जौहर कर लिया।

पद्मिनी कहां पैदा हुईं, इसे लेकर इतिहासकारों में कई अलग-अलग मत हैं। इस बारे में कुछ तथ्य हम आपको यहां बता रहे हैं…
पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन की बेटी थी, जिनकी शादी मेवाड़ के रावल रतन सिंह से हुई। सिंहल द्वीप को आज श्रीलंका के रूप में पहचाना जाता है।

– कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पद्मिनी मध्यप्रदेश के सिंगोली गांव की थी, जो राजस्थान में कोटा के नजदीक है। उस दौरान यहां चौहानों का शासन था और एक किला भी बना हुआ था, जिसके अवशेष आज भी मिलते हैं।

– राजस्थान के एक इतिहासकार का मानना है कि पद्मिनी जैसलमेर के रावल पूरणपाल की बेटी थीं, जिन्हें 1276 में जैसलमेर से निर्वासित कर दिया गया था। उन्होंने पूंगल प्रदेश में अपना ठिकाना बनाया। ये जगह बीकानेर के चमलावती और रमनेली नदियों के संगम पर बसा पड़केश्वर था। यह बीकानेर से खाजूवाल मार्ग पर 50 किमी पश्चिम में है।

rani padmini
रानी पद्मिनी
[/nextpage][nextpage title=”शौर्य का प्रतीक हैं पद्मिनी:-” ]

राजस्थान में शौर्य का प्रतीक हैं रानी पद्मिनी:-

राजस्थान में ही नहीं बल्कि पुरे भारत बर्ष में महारानी पद्मिनि को शौर्य का प्रतीक माना जाता है। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। रानी पद्मावती द्वारा किया गया जौहर इतिहास के सुनहरे पन्नो में हमेशा याद रखा जायेगा।

27 जनवरी को जयपुर में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान राजपूत करणी सेना के लोगो ने संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट की और सेट पर तोड़फोड़ मचाई। इनका आरोप था कि भंसाली इस फिल्म में रानी पद्मिनी का गलत चित्रण कर रहे हैं। फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के साथ पद्मिनी के रोमांटिक सीन फिल्माए जाने को लेकर विरोध चल रहा है।

विवाद की एक वजह ये भी है कि कई इतिहासकार पद्मिनी के होने को ही झुठला रहे हैं। उनकी नजर में ये सिर्फ एक फिक्शन कैरेक्टर था।

इतिहास पर गफलत की वजह:-

बता दें कि राजस्थान और खासकर चित्तौड़ के इतिहास में उन राजाओं का कम जिक्र किया गया है जिनका शासन काल कम समय का रहा है।
राजपूतों के इतिहास में रानियों और राजपरिवार की महिलाओं का भी कम उल्लेख मिलता है, ऐसा इसलिए क्योंकि परंपराओं के अनुसार इन्हें परदे में रहना होता था और ये खुलकर सबके सामने नहीं आती थीं।

राधावल्लभ सोमानी ने अपनी बुक में लिखा है कि 13वीं शताब्दी से पहले शिलालेखों में रानियों के नाम का जिक्र कम होता था, जिसके चलते हाड़ी करमेती, पन्नाधाय और मीरा का नाम भी नहीं है और इसी तरह पद्मिनी का भी। यही वो कारण हैं जिनके चलते राजा रतन सिंह, रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी से जुड़े तथ्य एकसमान नहीं होते और विवाद हो रहा है।

कौन है रानी पद्मिनी पर सवाल उठाने वाले लोग?

पिछले कुछ दिनों से कुछ अख़बारों में ये लिखा जा रहा है कि कि पद्मिनी असल में नहीं थी, बल्कि एक सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी के 1540 में रचे काव्य ‘पद्मावत’ का काल्पनिक कैरेक्टर था। जायसी के इस महाकाव्य पर हिंदी साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने टीका और समीक्षा भी की है।
सीनियर हिस्टोरियन इरफान हबीब ने भी उदयपुर में दावा किया है कि जिस पद्मावती के अपमान को मुद्दा बनाकर करणी सेना और दूसरे संगठन हंगामा मचा रहे हैं, वैसा कोई कैरेक्टर असलियत में था ही नहीं, क्योंकि पद्मावती पूरी तरह से एक काल्पनिक चरित्र है।

इरफान के मुताबिक, इतिहास में 1540 से पहले पद्मावती का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है। इसलिए पद्मावती सिर्फ एक काल्पनिक चरित्र है।
गीतकार जावेद अख्तर ने भी पिछले दिनों ट्वीट किया- ‘पद्मावत इतिहास नहीं, बल्कि एक काल्पनिक कहानी है। पद्मावत पहला हिंदी नॉवल है जिसे मलिक मोहम्मद जायसी ने अकबर के दौर में लिखा था। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे कि अनारकली और सलीम। एक अन्य ट्वीट में जावेद ने लिखा, ‘खिलजी मुगल नहीं थे, वे तो मुगलकाल से 200 साल पहले हुआ करते थे।

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रानी पद्मिनी को काल्पनिक बताने वालों के लिए कुछ प्रमाण:-

1. रानी पद्मिनी महल-

चित्तौड़गढ़ किले में कालका माता मंदिर और नागचंदेश्वर महादेव मंदिर के बीच रानी पद्मिनी महल बना हुआ है। यहां रानी गर्मियों के दिनों में अपनी दासियों के साथ रहा करती थीं। रानी की ख्वाहिश पर यहां बगीचा बनाया गया था, जो आज भी गुलशन है।

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रानी पद्मिनी महल
[/nextpage][nextpage title=”कांच कमरा” ]
2. कांच कमरा-

इसी महल के एक कमरे में कुछ कांच लगे हैं और सामने झील के बीच एक छोटा-सा महल भी है। ऐसा माना जाता है कि जब खिलजी ने पद्मिनी को देखने की शर्त रखी, तो उसे इसी कमरे में लाया गया और सामने महल में रानी पद्मिनी को उसके बाद कांच से उसे पद्मिनी का अक्स दिखाया गया था। फिल्म गाइड का “आज फिर जीने की तमन्ना है” गाने में इसी कांच कमरे से देवानंद को वहीदा रहमान को देखते फिल्माया गया है, जैसे खिलजी ने पद्मिनी को देखा था।

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कांच कमरा
[/nextpage][nextpage title=”राणा कुम्भा महल” ]
3. राणा कुम्भा महल-

इस महल को राणा कुम्भा (1433-68 ईस्वी) ने डेवलप कराया था। यहीं मंदिर के सामने वो जगह है, जहां पद्मिनी ने अलाउद्दीन खिलजी से बचने के लिए 16,000 अन्य राजपूत रमणियों के साथ जौहर किया था।

कुंभा महल से कुछ दूरी पर विजय स्तम्भ है, जहां पर कुछ सौ साल बाद रानी कर्णावती ने भी जौहर किया था। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस जगह की खुदाई में 30 फीट गहरे गड्ढे में महिलाओं की हड्डियां, राख और अधजले गहने मिले थे, जो जौहर की पुष्टि करते हैं।

kumbha palace
राणा कुम्भा महल
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4. जौहर स्थल-

छह माह के लगातार खूनी संघर्ष के चलते दुर्ग में खाद्य सामग्री की भी कमी हो गई थी। इससे घिरे हुए राजपूत तंग आ चुके थे।अतः जौहर और शाका करने का निर्णय लिया गया। गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया। पद्मावति के नेतृत्व में लगभग 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने संबंधियों को अंतिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश कर अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

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जौहर स्थल
[/nextpage][nextpage title=”गौमुख कुण्ड” ]
5. गौमुख कुण्ड-

महासती स्थल के पास ही गौमुख कुण्ड है। यहाँ एक चट्टान के बने गौमुख से प्राकृतिक भूमिगत जल निरन्तर एक झरने के रूप में शिवलिंग पर गिरती रहती है। एक छोटी प्राकृतिक गुफ़ा से बिल्‍कुल स्‍वच्‍छ जल की भूमिगत धारा बारह माह ‘गोमुख’ (गाय के मुख के आकार) से बहती है, इसीलिए इसका नाम गौमुख पड़ा है। इस जलाशय के पास स्थित रानी बिंदर सुरंग भी एक विख्यात आकर्षण है। यह सुरंग एक भूमिगत कक्ष की ओर जाती है, जहां चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी ने ‘जौहर’ किया था।

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गौमुख कुण्ड
[/nextpage][nextpage title=”शिलालेख पर पद्मिनी” ]
6. शिलालेख पर पद्मिनी-

कुछ समय पहले उदयपुर के पास दरीबा में एक शिलालेख मिला था जिसमें राजा रतनसिंह के शासन काल औऱ रानी पद्मिनी का जिक्र साफ-साफ किया गया है। इसकी तारीख वि सं. 1359 माघवदि 5 बुधवार है। यह तारीख अलाउद्दीन के चित्तौड़ आक्रमण के लिए निकलने से चार दिन पहले की है।

7. जैन ग्रंथों में रानी पद्मिनी का उल्लेख-

जैन ग्रंथों में भी पद्मिनी का उल्लेख मिलता है। जिनमें मेवाड़, राजा रतनसिंह, रानी पद्मिनी औऱ चित्तौड़ का इतिहास लिखा गया है।
– कर्कअणुचरित्र में जिक्र है कि रतन सिंह सिलोन (श्रीलंका) गए थे, जहां उन्होंने पद्मिनी से शादी की थी।
– जिनदत्तचरित्र और भविसयत कहा- इन दो ग्रंथों में भी रतन सिंह और पद्मिनी की शादी का जिक्र है।
– रयणसहरी- इसमें भी रानी पद्मिनी औऱ चित्तौड़ का जिक्र किया गया है।
– छिताई-चरित्र- इस ग्रंथ में पद्मिनी और पहली बार खिलजी के असफल दिल्ली लौटने का जिक्र है।
इसके अलावा
– राजस्थान के नामी इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी ने भी अपनी पुस्तक ‘वीर भूमि चित्तौड़’ में रतन सिंह का जिक्र करते हुए लिखा है- वह समर सिंह के बाद मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे।
-अमरकाव्य वंशावली में भी रतन सिंह को सिसौदिया का वंशज माना गया है।

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