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10 ऐसी चीज़े भारत में बदलनी बेहद जरूरी हैं

भारत विविधताओं का देश है. इस गतिशील देश में कुछ ही किलोमीटर के बाद भाषा से लेकर पहनावा तक बदल जाता है. पर यहां के लोग बदलाव को बदलाव नहीं बल्कि संस्कार मानते हैं. दुर्भाग्यवश इस देश में कुछ ऐसी चीज़े भी हैं जिनका बदलना बेहद जरूरी है. क्योंकि अगर ये न बदली तो हमारे बदलाव का कोई महत्व नही रहेगा.

1. जगह-जगह पर मची गंदगी

हर धरोहर को अपने बाप की समझने वाले लोग जब तक जिंदा हैं. डस्टबीन को देख कर अनदेखा करने वाले प्राणी जब तब इस भारत में हैं. तब तक यहां के हर मोड़ पर आपको गंदगी मिलेगी. हालांकि अब गंदगी मचाना एक आदत सी हो गई है, लेकिन ऐसे नहीं है कि ये आदत बदली नहीं जा सकती.

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2. भ्रष्ट्राचार और घूसखोरी की बीमारी

इतने बड़े देश को चलाने के लिए भाई किस चीज़ की ज़रूरत होती है? “रिश्वत.” ये एक ऐसी चीज़ है जिसके मायने कभी नहीं बदल सकते. वक्त के साथ-साथ इसके रूप बदल चुके हैं. अगर आप जानना चाहते हैं कि रिश्वत को कैसे खत्म किया जाए तो बस आइने के सामने बैठिए और ख़ुद से सवाल कीजिए. जिस दिन आप रिश्वत देना छोड़ देंगे उस दिन वो रिश्वत लेना भी छोड़ देंगे.

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3. अमीरी और ग़रीबी में बढ़ता फ़र्क

माना जाता है इंडिया में हर दस में से तीन लोग ग़रीब हैं. और ग़रीबी को लेकर हमेशा से ही ये कहा जाता है कि ये कभी नहीं मिट सकती लेकिन ये कहना ग़लत है. इसके लिए सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कि सबको उचित काम मिले और उचित दाम मिले. लेखक का मानना है कि ग़रीबी को मिटाना कोई आसान काम नहीं है. लेकिन अमीरी और ग़रीबी के फ़र्क को कम करना तो मुमकिन है.

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4. स्त्री-पुरूष असमानता का खात्मा

ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपर लंबी बहसें अक्सर होती हैं. लेकिन इन बहसों के बाद भी ये असमानता की खाई गहरी रहती है. प्रत्येक परिवार की तरफ़ से ही अगर बच्चे को नारी की इज्जत करना सीखाया जाए तो असमानता कम हो सकती है.

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5 . संकुचित मानसिकता को पीछे छोड़ना

सोच को बदलने में बहुत समय लग जाता है. इसे बदलने के लिए कुछ विचारों को हज़्म और कुछ को बाहर उगलना पड़ता है. हमारे स्कूलों में किताबी पाठ तो बहुत पढ़ाये जाते हैं लेकिन जब तक मानसिकता, सोच और आदर्शों को ऊंचा बनाने की बात पर जोर नहीं दिया जाऐगा, तब तक सब हवाबाजी ही रहेगी.

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6. सांप्रदायिकता को नकारना

जिस देश में धर्म ज्यादा होंगे वहां रह रहे लोगों में मतभेद भी ज्यादा होंगे. इन्हीं मतभेदों के चलते कई-कई बार दंगे भड़क जाते हैं. ये मानसिकता वायरस की तरह फैलती है. इससे समाज को एक समय के लिए नहीं बल्कि भविष्य के लिए भी नुक्सान होता है. इस वायरसनुमा सोच का खात्मा सबको समान नज़रिये से देखने के बाद ही हो सकता है. अब समय आ गया है कि हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई से ऊपर उठकर इंसानयित की बात करें.

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7. नागरिक शिष्टाचार (नैतिक मूल्यों) पर दें ध्यान

गाड़ी से जाते वक्त रेड लाइट तोड़ देना, सड़क पर थूक देना, रेलवे आरक्षण की खिड़की पर लाइन नहीं भीड़ बन कर खड़े हो जाना, शहर के उस कोने पर जहां लिखा होता है “ कुत्ते के पूत यहां मत मूत ” वहीं पेशाब करना, वैसे प्रमाणिक रूप से ये कोई समाजिक मुद्दे नहीं हैं. लेकिन फ़िर भी एक नागरिक को इन सब की समझ होनी चाहिए ताकि दूसरे लोगों को उनकी खूराफ़ात से परेशानी ना हो.

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8. घिसी-पीटी शिक्षा प्रणाली

कई स्कूलों में छत नहीं है. क्लास लेने वाले टीचर ख़ुद एक अजीब सी दुनिया में जी रहे होते हैं. बहुत से सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बहुत पिछड़ा हुआ है. आज के युग में जहां मेट्रो शहरों में बच्चे तकनीकी उपकरणों से शिक्षा ले रहें हैं, वहीं दूर-दराज के इलाकों में किताबें भी नहीं मिल रही. इसे लेकर प्रत्येक बंदे को अपने-अपने स्तर पर पहल करनी चाहिए ताकि शिक्षा प्रणाली के साथ इसके स्तर में भी सुधार हो सके और एक सही माहौल में देश का भविष्य शिक्षित हो.

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9. युवाओं की राजनीति में कम सहभागिता

सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ ही भारत सबसे युवा देश भी है. इसके बावजूद भी यहां के यूथ की राजनीति में भागीदारी कम है. अमूमन युवा राजनीति को “गंदी राजनीति” कहकर संबोधित करते हैं. जब तक युवा लोग राजनीति में भागीदार नहीं होंगे, सिस्टम में उतर कर उसकी सफाई नहीं करेंगे तबतक सब गंदा ही पड़ा रहेगा बॉस. इसके लिए ख़ुद चुल लेनी पड़ेगी. कम से कम वोट तो करो यार.

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10. “इस देश का कुछ नहीं हो सकता” कहने वाले लोगों की सोच को बदलना

ये लोग सारे ग़लत काम करने के बाद यहीं बोलते हैं कि “इस देश का कुछ नहीं हो सकता.” लेखक इनसें अनुरोध करता है कि अगर ख़ुद कुछ नहीं करते तो कम से कम दूसरों को तो पहल करने दें ताकि देश का कुछ हो सके.

बस इतना ही नहीं, ऐसे बहुतेरी चीज़े हैं जो हमें बदलनी चाहिए लेकिन सिर्फ़ बात करने से कुछ न होगा बॉस. इसके लिए बहुत कदम मिलाने पड़ेंगें, कदम बढ़ाने पड़ेंगे.

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Source – Gazab Post

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